Vrikshasan (वृक्षासन) योग का सबसे आसान और प्रचलित आसन है| जैसा कि नाम से पता चलता है Vrikshasan (वृक्षासन) में वृक्ष का अर्थ है ‘पेड़’ और आसन का अर्थ है ‘शरीर की मुद्रा’| इस आसन में आप एक पेड़ की मुद्रा में होते हैं जिससे शारीरिक और मानसिक संतुलन बनता है|

रावण ने शिव को प्रसन्न करने के लिए वृक्षासन में तपस्या की थी|

रामायण

Vrikshasan (वृक्षासन) करने की विधि

  • सीधे खड़े होकर अपने हाथों को शरीर के समानांतर रखें|
  • दाहिने घुटने को मोड़कर बाएं पैर के जांघ पर रखें|
  • ध्यान रहे, आपके पैरका तलवा जांघ पर सीधा रहे|
  • शरीर का संतुलन बनाये रखने के लिए बायाँ पैर सीधा होना चाहिए|
  • इस मुद्रा में गहरी श्वांस लेते रहें|
  • अपने दोनों हाथों को सिर के ऊपर उठायें, नमस्ते की मुद्रा में लायें, दृष्टि सामने किसी वास्तु पर केन्द्रित करें|
  • रीढ़ को सीधा रखें, शरीर ऊपर की ओर खिंचा हुआ होना चाहिए|
  • इस आसन में हाथों को ऊपर करते समय श्वांस भरना है, 15-20 सेकण्ड्स बाद श्वांस छोड़ते हुए सामान्य स्थिति में में वापस आना है|
  • इस मुद्रा को दूसरे पैर से दोहराएं|
  • यह प्रक्रिया 4-5 बार करें|
Vrikshasan
Vrikshasan

वृक्षासन के लाभ (Benefits)

  • स्नायु संस्थान में संतुलन आता है|
  • पैर के तलवे, टखने की मांशपेशियों को शक्ति प्रदान करता है|
  • पैर, पीठ और हाथ में खिचाव करके ठीक रखता है|
  • पैरों को मजबूत व लचीला बनाता है|
  • शरीर के पोश्चर को सही करने में मदद करता है|
  • साइटिका में लाभकारी है|
  • जांघ, कमर और सीने में खिंचाव कर सुडौल बनाता है|
  • मानसिक एकाग्रता, ध्यान केन्द्रित करने में मदद करता है जिससे दिमाग तेज़ होता है|
  • नसों के दर्द दूर करने में सहायक है|
  • जोड़ों, रीढ़ की हड्डी को महबूत करता है|
  • स्थिर, लचीला और धैर्यवान बनाता है|

सावधानियां (Precautions)

  • यह मुद्रा सुरक्षित है, हर कोई कर सकता है|
  • उच्च रक्तचाप है तो हाथ को छाती के पास प्रणाम मुद्रा में रखें, ऊपर ना उठायें|
  • वर्टिगो या माइग्रेन हो तो इस आसन को ना करें|

अनुगृहित (Obliged) –

मेरे पिता श्री शशीन्द्र शाश्वत के द्वारा अर्जित जानकारी से यह पोस्ट लाभान्वित है| मैं कोटि-कोटि धन्यवाद् देता हूँ कि उन्होंने वृक्षासन करने की विधि का सचित्र वर्णन किया|