राजतंत्र से लोकतंत्र तक

विश्व की सांस्कृतिक राजधानी वाराणसी, विश्व का एक पुरातन शहर भी है, यहाँ कई ऐतिहासिक धरोहर है। जिनमे से एक राजघाट पुल (Rajghat Bridge) भी है|

किसी भी पुल का देश के विकास और आर्थिक गतिविधियों में किस हद तक योगदान होता है इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि सामान्य उपभोक्ता वस्तुओं से लेकर बड़े – बड़े कल कारखानों के निर्माण में प्रयुक्त होने वाले सामान मालगाड़ियों, ट्रकों पर लादकर पुल के जरिए इधर से उधर जाते हैं। साथ ही साथ ये पुल सामाजिक, सांस्कृतिक, औद्योगिक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के साथ ही किसी पुल का सामरिक दृष्टि से भी महत्व कम नहीं होता।

पुल हमेशा जोड़ने का कार्य करती है। किसी भी देश के विकास में पुलों का बहुत महत्व होता है। वाराणसी शहर के पूर्वी छोर पर गंगा नदी पर बना विशालकाय मालवीय पुल (Malviya Bridge), जिसे आमतौर पर राजघाट पुल (Rajghat Bridge) के नाम से जाना जाता है। यह पुल मुख्यतः तीन नामों से प्रचलित है –

  • डफरिन पुल (Dufferin Bridge)
  • राजघाट पुल (Rajghat Bridge)
  • मालवीय पुल (Malviya Bridge)

एक उम्रदराज पुल का सदी भर लम्बा सफर

3,520 फुट लम्बे और लगभग 36 फुट चौड़े इस पुल का निर्माण 1882 की जनवरी में शुरू हुआ था और 1 अक्टूबर 1887 को इसे यातायात के लिए खोल दिया गया था। यह ब्रिटिश साम्राज्य की महारानी विक्टोरिया के शासन का 51वां वर्ष था।

Rajghat Bridge
Rajghat Bridge

पुल का नामकरण तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड डफरिन के नाम से 16 दिसम्बर 1887 को हुआ। तत्कालीन काशी नरेश महामाहिम ईश्वरी प्रसाद नारायण सिंह, बनारस के तत्कालीन मंडलायुक्त जे.जे.आर. इस नामकरण समारोह में उपस्थित थे।

सिविल इंजीनियरिंग के उत्कृष्ट नमूने के रूप में विद्यमान इस पुल को अंजाम देने का श्रेय ‘बैथो और हेडरस्टेड‘ नामक दो ब्रिटिश इंजीनियरो को जाता है। पुल में उस समय लगाये गये विशालकाय स्टील गाटरों तथा पुल के निर्माण में प्रयुक्त सयंत्रो, उपकरणों की डिजाइन इन्हीं दोनों ब्रिटिश इंजीनियरो के दिमाग की देन थी।

डफरिन पुल (Dufferin Bridge)

जब 1 अक्टूबर 1887 में जब पहली बार सिंगल रेल लाइन और पैदल पाथ के लिये खोला गया था तब यह डफरिन पुल के नाम से जाना जाता था।

Rajghat Bridge
Rajghat Bridge

यद्दपि इस पुल के गाटरों को स्वतंत्रता प्राप्ति के वर्ष 1947 में पूर्णतया बदल दिया गया था, क्योंकि तब तक इस पर केवल ट्रेनों का आवागमन होता था और वह भी मात्र एक रेलवे लाइन पर।

जब इसके गाटरों को पूरी तरह से बदला गया तो इसके डिजाइन में बदलाव करके इस पुल पर अगल-बगल दो रेलवे लाइन बिछायी गई तथा उसके ऊपर सड़क का निर्माण किया गया जो आज भी कार्य कर रहा है।

राजघाट पुल (Rajghat Bridge)

बदलते वक्त के साथ ही गंगा में सीना ताने खड़े इस पुल का कलेवर भी अब बदल गया है। ब्राउन रंग के इस पुल को सरकार ने सिल्वर रंग में बदल दिया है जो खुले मौसम में चांदी की तरह चमकते हुए सभी को अपनी ओर आकर्षित करता है, जैसे मानो कह रहा है कि मैं अभी जवान हूँ।

Rajghat Bridge
Rajghat Bridge

अपनी उम्र पूरी कर चुके शेरशाह सूरी मार्ग पर बना यह ब्रिज अब दयनीय स्थिति में है। इस पर अब भारी वाहनों का प्रवेश वर्जित है।

मालवीय पुल (Malviya Bridge)

रात में रंगीन रोशनी में नहा कर यह और भी शानदार लगता है।

Rajghat Bridge
Rajghat Bridge

ये पुल आज भी अपने अंदर कई कहानियां समेटे हुए खड़ा है। आज भी इस पर से गुजरते हुए लोग अपने कदम थाम कर इस पुल से काशी नगरी की सुंदरता को देखते हुए इस पावन शिव की नगरी को प्रणाम करते हैं और सुनहरी यादों में इस पुल से मनोरम दृश्य को हमेशा के लिए अपने हृदय में बसा लेते हैं।

अनुगृहित (Obliged)

Amareshwar Singh

मेरे मित्र अमरेश्वर सिंहएम.ए.(अर्थ शास्त्र), एल.एल.बी., बी.एड. संचालक विश्वेश्वर शिक्षण संस्थान, हरहुआ, वाराणसी द्वारा प्राप्त अभूतपूर्व अर्जित जानकारी से यह पोस्ट लाभान्वित है| मैं कोटि-कोटि धन्यवाद् देता हूँ कि अमरेश्वर ने अपने सुविचार शेयर किये|