Yoga & Aasana (योग एवं आसन)| अपनी अंतरात्मा के साथ एकाकार होने के अनुभव को योग कहते हैं| आसन शरीर की वह स्थिति है जिसमे आप अपने शरीर और मन को शांत, स्थिर एवं सुख से रख सकें|

Yoga & Aasana (योग एवं आसन) का अभ्यास स्वास्थ्य लाभ एवं उपचार के लिए भी किया जाता है| शारीरिक, मानसिक और अध्यात्मिक व्यक्तित्व के विकास में भी आसनों का विशेष महत्व है| आसन एकाग्रता एवं ध्यान के लिए बहुत उपयोगी है|

आसन का अभ्यास स्वस्थ, अस्वस्थ, युवा एवं वृद्ध सभी कर सकते हैं|

आसन का अभ्यास आराम से धीरे-धीरे व एकाग्रता के साथ किया जाता है| इस प्रकार वाह्य एवं आन्तरिक दोनों ही स्थानों पर प्रभाव पड़ता है अतः स्नायुमंडल, अन्तःस्रावी ग्रंथियां और आतंरिक अंग तथा मांशपेशियाँ सुचारू रूप से कार्य करने लगती हैं| इन आसनों का प्रभाव शरीर और मन पर पड़ता है जिससे अनेक दुर्बलताओं से मुक्ति मिलती है|

अनेक लोग आसनों का सम्बन्ध शारीरिक व्यायाम या शरीर को मांसल बनाने वाली प्रक्रियाओं से जोड़ते हैं|

यह धारणा पूर्णतः गलत है|

शारीरिक लाभ

  • अन्तःस्रावी ग्रंथि प्रणाली नियंत्रित एवं सुव्यवस्थित होती है|
  • उचित मात्रा में रस का स्राव होने लगता है|
  • अगर एक भी ग्रंथि विकृत हो जाये तो उसका प्रभाव स्पष्ट रूप से देखा जा सकता है|
  • मांसपेशियाँ, हड्डियाँ, स्नायुमंडल, ग्रंथि प्रणाली, श्वसन प्रणाली, उत्सर्जन प्रणाली, रक्तसंचालन प्रणाली ये सभी एक दूसरे से सम्बंधित हैं या कह सकते हैं कि सहयोगी हैं|

मानसिक लाभ

  • आसन मन को शक्तिशाली बनाता है|
  • दृढ़ता एवं एकाग्रता की शक्ति विकसित करता है|
  • मस्तिष्क शक्तिशाली एवं संतुलित बना रहता है|
  • आसनों का अभ्यास व्यक्ति कि सुप्त शक्तियों को जागृत करता है|
  • आत्मविश्वास आता है|
  • व्यवहार तथा कार्यों से दूसरों को प्रेरणा देता है|

आध्यात्मिक लाभ

  • आसन राजयोग के अष्टांग मार्ग का तृतीय सोपान है|
  • इसका कार्य समाधि की ओर अग्रसर करने वाले उच्च यौगिक अभ्यास – प्रत्याहार, धारणा, ध्यान आदि के लिए शरीर को स्थिर बनाना है|
  • आसन आध्यात्मिक मार्ग का एक सोपान है|
  • आसनों में दक्षता प्राप्त किये बिना आध्यात्मिक शक्ति का जागरण संभव नहीं है|

प्राचीनतम ऐतिहासिक आधार

मानव जाति के प्राचीनतम साहित्य वेदों में इनका उल्लेख मिलता है| कुछ लोगों का ऐसा भी विश्वास है कि योग-विज्ञान, वेदों से भी प्राचीन है|

पुरातत्व विभाग द्वारा हड़प्पा और मोहन जोदाड़ो के खुदाई में ऐसी मूर्तियाँ मिली जिसमें शिव-पार्वती को विभिन्न योगासनों में अंकित किया गया है|

Yoga & Aasana - Shiv Parvati
Yoga & Aasana (योग एवं आसन) – शिव और पार्वती

परम्परा और धार्मिक पुस्तकों के अनुसार आसनों सहित योग विद्या की खोज शिव ने की है| सभी आसनों की रचना की और अपनी प्रथम शिष्या पार्वती को सिखलाया| ये आसन प्राणी की प्रारम्भिक अवस्था से मुक्त अवस्था तक प्रगतिशील विकास का प्रतिनिधित्व करते हैं|

शताब्दियों से इन आसनों के रूप में परिवर्तन एवं सुधर होता रहा है और महान ऋषियों और योगियों ने इनकी संख्या सीमित कर दी| अब ज्ञात आसनों की संख्या कुछ सौ ही रह गयी है| इनमे से केवल 84 (चौरासी) की ही व्याख्या हुई है| सामान्य रूप से आधुनिक परिवेश में प्रत्येक व्यक्ति के लिए 30 (तीस) आसन ही उपयोगी समझे गए हैं|

शरीर, मन और चेतना को शुद्ध करने के लिए –

  • आसन
  • प्राणायाम
  • मुद्रा
  • बंध

का अभ्यास किया जाता है| इस प्रकार योग के विधियों का मूल, तन्त्र में ही है|

तन्त्र

प्रथम चेतना के रूप में अवतरित शिव ने मानव कल्याण के लिए अपने गुप्त ज्ञान को तन्त्र शास्त्र के रूप में दिया| शिव को तन्त्र शास्त्र का प्रथम गुरु कहा गया है|

Yoga & Aasana - Tantra
Yoga & Aasana (योग एवं आसन) – तन्त्र

तन्त्र दो शब्दों के योग से बना है – ‘तनोति’ एवं ‘त्रयाति’, इसका अर्थ क्रमशः विस्तार एवं मुक्ति है| अतः तन्त्र, चेतना के विस्तार का विज्ञान है जिसके द्वारा हम उसे उसकी सीमाओं से मुक्त कर देते हैं| योग, तन्त्र की ही एक शाखा है, हम योग को तन्त्र से पृथक नहीं कर सकते हैं| दोनों की उत्पत्ति शिव और शक्ति से हुई है| चेतन और जड़ को एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता है| अग्नि और ताप की तरह दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं|

तन्त्र ऐसी विधि का निर्देश करता है जिससे भौतिक चेतना का दैवी चेतना में और फिर मुक्त चेतना में विस्तार किया जाता है|

योग, योगी एवं पशु-पक्षी

ऐतिहासिक प्रमाण के आधार पर योगासनों के प्रथम व्याख्याकार महान योगी गोरखनाथ थे| उन्होंने अपने निकटतम शिष्यों को सभी आसन सिखाये| उस काल के योगी, समाज से बहुत दूर पर्वतों और जंगलों में रहा करते थे, वहां तपस्वी का जीवन व्यतीत करते थे|

Yoga & Aasana - Yogi Gorakhnath
Yoga & Aasana (योग एवं आसन) – योगी गोरखनाथ

जानवर ही योगियों के महान शिक्षक थे क्यूंकि जानवर सांसारिक समस्याओं एवं रोग से मुक्त जीवन व्यतीत करते थे, न डॉक्टर, न ईलाज, न दवाएं चाहिए था| प्रकृति उनकी एकमात्र सहायक है|

योगी, ऋषि, मुनियों ने जानवरों की गतिविधियों पर बड़े ध्यान से विचार कर उनका अनुकरण किया| इस प्रकार वन के जीव-जंतुओं के अध्ययन से योग की अनेक विधियों का विकास हुआ|

पशु, पक्षी और योग

  • कोबरा (Cobra) – भुजंगासन (Bhujangasana)
  • हंस (Swan) – हंसासन (Hansasana)
  • गाय (Cow) – बिटिलासन (Bitilasana)
  • बिल्ली (Cat) – मार्जरीआसन (Marjaryasana)
  • ऊंट (Camel) – उस्ट्रासन (Ustrasana)
  • तितली (Butterfly) – तितलीआसन (Titaliasana)
  • श्वान नीचे देखते हुए (Downward Facing Dog) – अधोमुख श्वानासन (Adhomukha Shvanasana)
  • मछली (Fish) – मत्स्यासन (Matsyasana)
  • राजा कबूतर (King Pigeon) – कपोतासन (Kapotasana)
  • एक पैर वाला कबूतर (One-Legged Pigeon) – एक पाद कपोतासन (Eka Pada Kapotasana)
  • गरुण (Eagle) – गरुणासन (Garudasana)
  • कछुआ (Tortoise) – कुर्मासन (Kurmasana)
  • गाय का मुख (Cow Face) – गोमुखासन (Gomukhasana)
  • सारस (Crane) – बकासन (Bakasana)
  • कौवा (Crow) – काकासन (Kakasana)
  • मोर (Peacock) – मयूरासन (Mayurasana)
  • बिच्छू (Scorpion) – वृश्चिकासन (Vrishchikasana)
  • मेंढक (Frog) – भेकासन (Bhekasana)
  • शेर (Lion) – सिंहासन (Sinhasana)
  • बन्दर (Monkey) – हनुमानासन (Hanumanasana)
  • टिड्डी (Locust) – शलभासन (Salabhasana)
  • घोड़ा (Horse) – वातायानासन (Vatayanasana)
  • खरगोश (Rabbit) – ससंगासन (Sasangasana)
  • जुगनू (Firefly) – तितिभासन (Titibhasana)
  • मगरमच्छ (Crocodile) – मकरासन (Makarasana)

आश्चर्य की बात नहीं है कि योग रोग उपचार की एक प्राकृतिक एवं प्रभावशाली प्रणाली है|

इस युग में योग सारे संसार में फ़ैल रहा है| इसका ज्ञान हर एक की संपत्ति बन रहा है| आज डॉक्टर, वैज्ञानिक योग के अभ्यास की सलाह देते हैं| अब प्रत्येक व्यक्ति अनुभव कर रहा है कि योग केवल एक साधु सन्यासी के लिए ही नहीं, परन्तु प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक है|

निर्देश एवं सावधानियां

सर्वप्रथम आसन, फिर प्राणायाम और अंत में ध्यान किया जाता है|

आसन प्रभावशाली एवं वास्तव में लाभकारी तभी हो सकते हैं जबकि उनके लिए उचित ढंग से तैयारियां की जायें –

  • आँतों को खाली रखना
  • पेट को खाली रखना
  • श्वांस-प्रश्वांस हमेशा नाक से
  • अभ्यास का स्थान – खुले, हवादार कमरों में
  • तनाव – अनावश्यक जोर मत लगाइए
  • आयु सीमा – विभिन्न आयु वर्ग के स्त्री पुरुष कर सकते हैं|
  • अभ्यास का समय – भोजन के बाद के समय को छोड़कर कभी भी किया जा सकता है| वैसे सभी यौगिक अभ्यासों का उत्तम समय ब्रह्ममुहूर्त में प्रातः 4 (चार) से 6 (छः) बजे है| संभवतः शाम की अपेक्षा इस समय मांसपेशियाँ अधिक कड़ी लगेगी, नियमित अभ्यास से लचीली हो जाएगी| शाम को आसन किये जाये तो शरीर तुलनात्मक रूप से रबर का एक टुकड़ा लगेगा|
  • वस्त्र – ढीले-ढाले, हल्के, आरामदायक| चश्मा, आभूषण, घड़ी आदि उतार दें|
  • शिथिलीकरण – शवासन अन्त में करें|
  • आसनों का त्याग – आसन के दौरान शरीर के किसी अंग में पीड़ा होती हो तो उस आसन को तुरंत बंद कर, सलाह लें| यदि किसी आसन में कष्ट या बेचैनी हो तो उस स्थिति में अधिक देर ना रुकें| यदि आँतों में वायु, अत्यधिक उष्णता या रक्त अत्यधिक अशुद्ध हो तो सर के बल का आसन न करें| विषैले तत्व मस्तिष्क में पहुँच कर क्षति पहुंचा सकते हैं|

सीमाएं

वे लोग जो पेट के छाले, टी.बी., आंत उतरना जैसे दीर्घ व स्थायी रोगों से पीड़ित या हड्डियाँ टूट गईं हों उन्हें आसन का अभ्यास योग शिक्षक या डॉक्टर के सलाह पर करनी चाहिए|

अनुगृहित (Obliged) –

मेरे पिता श्री शशीन्द्र शाश्वत के द्वारा अभूतपूर्व अर्जित जानकारी से यह पोस्ट लाभान्वित है| मैं कोटि-कोटि धन्यवाद् देता हूँ कि उन्होंने अपने विचार शेयर किये|

Introduction (संक्षिप्त परिचय)

बचपन से ही मेरी रूचि आध्यात्म में रही है| पिताजी संस्कृत के लेक्चरर रहे हैं, इस कारण मैं अनेक संस्कृत की ज्ञानवर्धक पुस्तकों का अध्ययन करता रहा हूँ| शिक्षा – एम.ए. (समाज कार्य), विद्या वाचस्पति|

Objective (उद्देश्य)

Full happiness and full enjoyment to live life 200% (100% subjective & 100% objective). Treatment of disorder life to grow towards self realization.