Padangusthasana (पादांगुष्ठासन) के अभ्यास में थोड़ा वक्त लगता है| पादांगुष्ठासन संस्कृत भाषा का शब्द है। पादांगुष्ठा का अर्थ है पैर का अंगूठा। इसलिये कि एक पैर के अंगूठे पर सम्पूर्ण शरीर का भार होता है, इस कारणवश इसे ‘पादांगुष्ठासन’ कहते हैं।
पादांगुष्ठासन करने की विधि
उकडू बैठ जायें|
एड़ियों को ऊपर उठायें|
घुटनों को नीचे झुकाकर क्षैतिज स्थिति में लाएं|
अब एक पैर को दूसरे पैर की जांघ पर रखिये|
संतुलन रखने वाले पैर का दबाव गुदा एवं लिंग के मध्य हो|
दोनों हथेलियों को छाती के सामने हाथ जोड़कर प्रार्थना की मुद्रा में रखिये|
एक बिन्दु पर दृष्टि केन्द्रित रखें और संतुलन बनाए रखें|
जितनी देर सम्भव हो, दोनों पैरों से सन्तुलन का अभ्यास करें|
पादांगुष्ठासन के लाभ
गुदा और अंडकोष के बीच में वीर्य की नाड़ियां हैं|
उन पर एड़ी के दबाव से वीर्य का प्रवाह नीचे की ओर होना बंद हो जाता है, इसी से यह आसन वीर्यदोष नष्ट करने के लिए अत्यंत उपयोगी माना जाता है|
इस आसन से स्वप्नदोष भी मिट जाता है|
कामशक्ति पर नियंत्रण होता है|
1-5 मिनट तक कर सकते हैं|
ब्रम्हचर्य पालन व धातुप्रमेह में लाभदायक है|
इससे पैर के पंजे अधिक बलवान होते हैं।
पैरों के अग्रभाग को तथा टखनों को शक्ति प्रदान करता है|
इस आसन में टांगों की मासपेशियो सबल तथा सशक्त होती है।
सावधानियां
कोई विशेष सावधानी नहीं है|
इस आसन को करते समय कमर बिलकुल सीधी होनी चाहिये।
सम्पूर्ण शरीर केवल पंजों के अंगूठे पर टिका होना चाहिए।
जो व्यक्ति संतुलन बना सकते हैं वो इस आसन को कर सकते हैं|
स्त्रियों को यह आसन नहीं करना चाहिए।
अनुगृहित (Obliged) –
मेरे पिता श्री शशीन्द्र शाश्वत के द्वारा अर्जित जानकारी से यह पोस्ट लाभान्वित है| मैं कोटि-कोटि धन्यवाद् देता हूँ कि पिताजी ने पादांगुष्ठासन को विस्तार पूर्वक बताया|
मैं माही, मुझे शुरू से ही Shayari, Quote & Poetry (शायरी, विचार एवं कवितायेँ) लिखने का शौक रहा है| मैंने बहुत से लेख लिखे हैं उनमें से कुछ को मैं यहाँ ब्लॉग साईट पर पोस्ट कर रही हूँ|…
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