Yoga & Aasana (योग एवं आसन)| अपनी अंतरात्मा के साथ एकाकार होने के अनुभव को योग कहते हैं| आसन शरीर की वह स्थिति है जिसमे आप अपने शरीर और मन को शांत, स्थिर एवं सुख से रख सकें|
Yoga & Aasana (योग एवं आसन) का अभ्यास स्वास्थ्य लाभ एवं उपचार के लिए भी किया जाता है| शारीरिक, मानसिक और अध्यात्मिक व्यक्तित्व के विकास में भी आसनों का विशेष महत्व है| आसन एकाग्रता एवं ध्यान के लिए बहुत उपयोगी है|
आसन का अभ्यास आराम से धीरे-धीरे व एकाग्रता के साथ किया जाता है| इस प्रकार वाह्य एवं आन्तरिक दोनों ही स्थानों पर प्रभाव पड़ता है अतः स्नायुमंडल, अन्तःस्रावी ग्रंथियां और आतंरिक अंग तथा मांशपेशियाँ सुचारू रूप से कार्य करने लगती हैं| इन आसनों का प्रभाव शरीर और मन पर पड़ता है जिससे अनेक दुर्बलताओं से मुक्ति मिलती है|
अनेक लोग आसनों का सम्बन्ध शारीरिक व्यायाम या शरीर को मांसल बनाने वाली प्रक्रियाओं से जोड़ते हैं|
यह धारणा पूर्णतः गलत है|
मानव जाति के प्राचीनतम साहित्य वेदों में इनका उल्लेख मिलता है| कुछ लोगों का ऐसा भी विश्वास है कि योग-विज्ञान, वेदों से भी प्राचीन है|
पुरातत्व विभाग द्वारा हड़प्पा और मोहन जोदाड़ो के खुदाई में ऐसी मूर्तियाँ मिली जिसमें शिव-पार्वती को विभिन्न योगासनों में अंकित किया गया है|
परम्परा और धार्मिक पुस्तकों के अनुसार आसनों सहित योग विद्या की खोज शिव ने की है| सभी आसनों की रचना की और अपनी प्रथम शिष्या पार्वती को सिखलाया| ये आसन प्राणी की प्रारम्भिक अवस्था से मुक्त अवस्था तक प्रगतिशील विकास का प्रतिनिधित्व करते हैं|
शताब्दियों से इन आसनों के रूप में परिवर्तन एवं सुधर होता रहा है और महान ऋषियों और योगियों ने इनकी संख्या सीमित कर दी| अब ज्ञात आसनों की संख्या कुछ सौ ही रह गयी है| इनमे से केवल 84 (चौरासी) की ही व्याख्या हुई है| सामान्य रूप से आधुनिक परिवेश में प्रत्येक व्यक्ति के लिए 30 (तीस) आसन ही उपयोगी समझे गए हैं|
शरीर, मन और चेतना को शुद्ध करने के लिए –
का अभ्यास किया जाता है| इस प्रकार योग के विधियों का मूल, तन्त्र में ही है|
प्रथम चेतना के रूप में अवतरित शिव ने मानव कल्याण के लिए अपने गुप्त ज्ञान को तन्त्र शास्त्र के रूप में दिया| शिव को तन्त्र शास्त्र का प्रथम गुरु कहा गया है|
तन्त्र दो शब्दों के योग से बना है – ‘तनोति’ एवं ‘त्रयाति’, इसका अर्थ क्रमशः विस्तार एवं मुक्ति है| अतः तन्त्र, चेतना के विस्तार का विज्ञान है जिसके द्वारा हम उसे उसकी सीमाओं से मुक्त कर देते हैं| योग, तन्त्र की ही एक शाखा है, हम योग को तन्त्र से पृथक नहीं कर सकते हैं| दोनों की उत्पत्ति शिव और शक्ति से हुई है| चेतन और जड़ को एक दूसरे से अलग नहीं किया जा सकता है| अग्नि और ताप की तरह दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं|
तन्त्र ऐसी विधि का निर्देश करता है जिससे भौतिक चेतना का दैवी चेतना में और फिर मुक्त चेतना में विस्तार किया जाता है|
ऐतिहासिक प्रमाण के आधार पर योगासनों के प्रथम व्याख्याकार महान योगी गोरखनाथ थे| उन्होंने अपने निकटतम शिष्यों को सभी आसन सिखाये| उस काल के योगी, समाज से बहुत दूर पर्वतों और जंगलों में रहा करते थे, वहां तपस्वी का जीवन व्यतीत करते थे|
जानवर ही योगियों के महान शिक्षक थे क्यूंकि जानवर सांसारिक समस्याओं एवं रोग से मुक्त जीवन व्यतीत करते थे, न डॉक्टर, न ईलाज, न दवाएं चाहिए था| प्रकृति उनकी एकमात्र सहायक है|
योगी, ऋषि, मुनियों ने जानवरों की गतिविधियों पर बड़े ध्यान से विचार कर उनका अनुकरण किया| इस प्रकार वन के जीव-जंतुओं के अध्ययन से योग की अनेक विधियों का विकास हुआ|
आश्चर्य की बात नहीं है कि योग रोग उपचार की एक प्राकृतिक एवं प्रभावशाली प्रणाली है|
इस युग में योग सारे संसार में फ़ैल रहा है| इसका ज्ञान हर एक की संपत्ति बन रहा है| आज डॉक्टर, वैज्ञानिक योग के अभ्यास की सलाह देते हैं| अब प्रत्येक व्यक्ति अनुभव कर रहा है कि योग केवल एक साधु सन्यासी के लिए ही नहीं, परन्तु प्रत्येक व्यक्ति के लिए आवश्यक है|
सर्वप्रथम आसन, फिर प्राणायाम और अंत में ध्यान किया जाता है|
आसन प्रभावशाली एवं वास्तव में लाभकारी तभी हो सकते हैं जबकि उनके लिए उचित ढंग से तैयारियां की जायें –
वे लोग जो पेट के छाले, टी.बी., आंत उतरना जैसे दीर्घ व स्थायी रोगों से पीड़ित या हड्डियाँ टूट गईं हों उन्हें आसन का अभ्यास योग शिक्षक या डॉक्टर के सलाह पर करनी चाहिए|
मेरे पिता श्री शशीन्द्र शाश्वत के द्वारा अभूतपूर्व अर्जित जानकारी से यह पोस्ट लाभान्वित है| मैं कोटि-कोटि धन्यवाद् देता हूँ कि उन्होंने अपने विचार शेयर किये|
बचपन से ही मेरी रूचि आध्यात्म में रही है| पिताजी संस्कृत के लेक्चरर रहे हैं, इस कारण मैं अनेक संस्कृत की ज्ञानवर्धक पुस्तकों का अध्ययन करता रहा हूँ| शिक्षा – एम.ए. (समाज कार्य), विद्या वाचस्पति|
Full happiness and full enjoyment to live life 200% (100% subjective & 100% objective). Treatment of disorder life to grow towards self realization.
मैं माही, मुझे शुरू से ही Shayari, Quote & Poetry (शायरी, विचार एवं कवितायेँ) लिखने का शौक रहा है| मैंने बहुत से लेख लिखे हैं उनमें से कुछ को मैं यहाँ ब्लॉग साईट पर पोस्ट कर रही हूँ|…
Padangusthasana (पादांगुष्ठासन) के अभ्यास में थोड़ा वक्त लगता है| पादांगुष्ठासन संस्कृत भाषा का शब्द है।…
कोरोना महामारी के दौर में Ayurvedic Home Remedies (आयुर्वेदिक घरेलू नुस्खे) बहुत ही कारगर है|…
वर्तमान कोरोना महामारी में आप प्राकृतिक विधि से अपनी प्रतिरोध क्षमता बढ़ा सकते हैं| फेफड़े…
Gorakshasana (गोरक्षासन) महान योगी गोरक्षनाथ के नाम पर पड़ा है| योगी जी प्रायः इसी आसन…
योग में वर्णित वशिष्ठासन को स्वास्थ्य का खजाना माना जाता है| संस्कृत शब्द वशिष्ठ का…
This website uses cookies.
View Comments
सर्वप्रथम पापा जी को सादर प्रणाम, आपके द्वारा योग के बारे में विस्तार से बताने के लिए आपका आभारी हूँ।आज पूरी दुनिया योग का महत्व समझ रही है, कि किस प्रकार योग करके अपने घर परिवार को स्वस्थ रखा जा सकता है।आज की नई पीढ़ी जिम जाकर अपने को अंदर से खोखला करती जा रही है।आपने हमे बताया कि योग को किस समय करना चाहिए। आपकी यह जानकारी गागर में सागर के समान है। इसके लिए मैं आपको कोटि-कोटि धन्यवाद देता हूँ।
अत्यंत रोचक एवं ज्ञानवर्धक