ये मनी ऑर्डर की स्लिप, Indian Post द्वारा मुझे मेरे दादा जी के पास से मिली थी| बहुत दिनों से मैंने इसे सम्हाल कर रखा था| अपने मित्र विक्रम के ही कहने पर इसके बारे में बता रहा हूँ| इसके लिए मेरे मित्र ने मुझे प्रोत्साहित किया और मेरा मार्गदर्शन भी किया। जिसके लिए विक्रम को बहुत – बहुत धन्यवाद देता हूँ।
इस मनी ऑडर में मुझे सबसे खास लगा कि इसकी टाइपिंग और लेखन शैली| ये मनी ऑडर 1941 में मेरे दादा जी ने कल्याण पत्रिका के लिए गीता प्रेस, गोरखपुर को किया था।
आज़ादी के पहले भी हमारी डाक व्यवस्था कितनी सृदृढ़ थी। 1766 में लार्ड क्लाइव द्वारा प्रथम डाक सेवा भारत में शुरू की गई। 1774 में प्रथम डाकघर की स्थापना कलकत्ता में वारेन हेस्टिंग द्वारा किया गया था|
भारत में पहली बार मनी ऑडर की शुरुआत 1880 में हुई। आज भारत में लगभग 1,55,000 डाकघर हैं।
135 वर्षों से चली आ रही मनी ऑडर सेवा, अब इतिहास बन कर रह गई है। 01 अप्रैल 2015 को भारत सरकार ने इसे बंद करने की घोषणा कर दी है। इसके स्थान पर नई इलेक्ट्रॉनिक मनी ऑडर (EMO) शुरू की गई है।
गीता प्रेस में कल्याण पत्रिका का प्रकाशन 1926 में शुरू हुआ। पत्रिका के प्रथम संस्थापक भाई जी हनुमान प्रसाद पोद्दार थे। इस पत्रिका की अब तक लगभग 16 करोड़ 20 लाख प्रतियां छप चुकी हैं। गीता प्रेस के संस्थापक सेठ जी जयदयाल गोयनका की सहमति से 22 अप्रैल 1926 को पत्रिका का नाम कल्याण निश्चित हुआ ।
इसमें महापुरुषों के जीवन प्रसंग, प्रेरणाप्रद लघु बोध कथाएँ विभिन्न धर्म एवं संस्कृतियों की प्रेरक बोध कथाएँ, कर्म सिद्धान्त आदि शामिल रहते हैं। इसके अतिरिक्त कभी-कभी विदेशियों के लेखों के अनुवाद भी प्रकाशित होते हैं। यह पत्रिका आज अपने 95वें वर्ष में प्रवेश कर चुकी है। इसकी प्रिंट काफी सुन्दर, अच्छे पेज के साथ काफी कम कीमत में उपलब्ध रहती थी।
दादा जी ने इस पत्रिका की सदस्यता ली हुई थी । अतः प्रत्येक माह यह पत्रिका आती थी। इस पत्रिका में संस्कृत भाषा में श्लोक लिखे हुए रहते थे, जो मुझे बचपन मे समझ नहीं आते थे।
दादा जी व दादी जी ( स्मृति शेष श्याम सितारा देवी ) बड़े ही रुचि के साथ इसे पढ़ते थे। दादी जी गंदे हाथों से इसे छूने नहीं देती थीं और अक्सर इसमें प्रकाशित प्रेरक प्रसंगो अच्छे से सुनाती थीं। पत्रिका के कवर पर भगवान जी की फ़ोटो हुआ करती थी।
प्रातः स्नान, अर्घ देना (सूर्य को जल देना), गीता का पाठ करना, टहलना, आसन लगाना, कल्याण पढ़ना यह सब दादा जी के दिनचर्या का एक अत्यन्त आवश्यक अंग था। दादा जी एक बिल्डिंग कॉन्ट्रेक्टर थे। उन्होंने बनारस में (भेलूपुर, रथयात्रा, रामनगर, आदि स्थानों पर) काफी बंगले बनवाये। काफी समय तक बनारस के बाहर मैहर और कलकत्ता में भी कार्य करवाया। दादा जी चीजों को बहुत ही सम्हाल कर रखते थे। इसी कारण यह मनी ऑडर स्लिप आज तक है।
मेरे मित्र अमरेश्वर सिंह – एम.ए.(अर्थ शास्त्र), एल.एल.बी., बी.एड. की शिक्षा उपरांत इनके पिता जी (श्री सुरेंद्र प्रताप सिंह) ने उनके पूज्यनीय दादा जी स्मृति शेष बीरेश्वर प्रसाद जी की याद में एक स्कूल की स्थापना सन 2009, हरहुआ, वाराणसी में विश्वेश्वर शिक्षण संस्थान के नाम से की, जो अमरेश्वर द्वारा संचालित हो रहा है।
मैं माही, मुझे शुरू से ही Shayari, Quote & Poetry (शायरी, विचार एवं कवितायेँ) लिखने का शौक रहा है| मैंने बहुत से लेख लिखे हैं उनमें से कुछ को मैं यहाँ ब्लॉग साईट पर पोस्ट कर रही हूँ|…
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